मुर्दों का गांव: आजादी के ठीक पहले 21 साल के धर्मवीर भारती की लिखी कहानियां

1946 में धर्मवीर भारती के कथा संग्रह ‘मुर्दों का गांव’ का पहला संस्करण आया था. उस वक्त धर्मवीर भारती 21 साल के थे. किताब महल प्रकाशन की इस किताब के कवर पर लेखक का नाम धर्मवीर भारतीय दिया हुआ है. अंदर धर्मवीर भारती लिखा हुआ है. ये वो दौर था जब बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा था और अंग्रेजी सरकार वेलफेयर स्टेट होने का ढोंग करती हुई लोगों को मरने के लिए छोड़ चुकी थी. ऐसे में युवा लेखक ने कहानियों के माध्यम से ही लोगों की पीड़ा बताने की कोशिश की. ऐसा प्रतीत होता है कि धर्मवीर भारती उस वक्त पत्रकारिता कर रहे थे, क्योंकि इन कहानियों में पत्रकार की नजर देखी जा सकती है.

कथा संग्रह में कुछ नौ कहानियां हैं. पहली कहानी मुर्दों का गांव है जिसे कथा संग्रह के नाम के तौर पर भी रखा गया है. इस कहानी में शुरुआत भुतहा तरीके से होती है, लेकिन कुछ देर बाद पता चल जाता है कि ये भूख से मर रहे लोगों की कहानियां हैं. संभवतः लेखक ऐसे किसी गांव में हो के आ चुका है. दूसरी कहानी ‘एक बच्ची की कीमत’ बिल्कुल ऐसी कहानी है जिसको लेकर आजादी के बाद तुरंत कई फिल्में बनीं. समाज के ताने सहती औरत, अपनी बच्ची को भूख के लिए बेचती औरत और अंत में बेचने से मिले पैसे खोटे निकलने की कसक. पीड़ा का अंतिम स्तर छूने की कोशिश करता है युवा लेखक.

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इसी तरह तीसरी कहानी ‘आदमी का गोश्त’ में सियारों के माध्यम से विडंबना स्थापित करने की कोशिश की गई है. गुलाम मनुष्य की बेइज्जती सियार भी कर देते हैं. फिर आगे की कहानियों बीमारियां, कफन-चोर, हिन्दू या मुसलमान, कमल और मुर्दे, एक-पत्र और कहानियों से पहले के लेखन में लेखक ने कई विषयों को समेटा है.

कफन-चोर में ब्यूरोक्रेसी तो अगली कहानी में बुढ़िया के माध्यम से हिंदू-मुसलमान की समस्या दिखाई गई है. बुढ़िया की कहानी मंटो की लिखी कहानी ‘टेटवाल का कुत्ता’ जैसी प्रतीत होती है. हिंदू-मुसलमान दोनों से ही धक्के खाती है बूढ़ी औरत. कमल और मुर्दे में देवदूतों और अप्सराओं का सहारा लिया गया है. देवदूत कमल का फूल खोजने धरती पर आते हैं. कमल का फूल विकास का प्रतीक है, ऐसा वो मानते हैं. इसी क्रम में वो भारत के मुर्दों को देखते हैं और सिहर जाते हैं.

ये कहानियां पढ़कर अमृत राय द्वारा लिखी ‘कलम का सिपाही’ का स्मरण हो आता है. जिसमें मुंशी प्रेमचंद ने बेटे अमृत राय को समझाया था कि युवा लेखक पीड़ा का अंतिम स्तर छूना चाहता है और हर किरदार को मारने, उन्हें यातना देने में यकीन रखता है. खुद प्रेमचंद ने कहीं लिखा है कि युवावस्था में वो भी अपने किरदारों को बहुत पीड़ा से गुजारते थे और उनके मर जाने में उन्हें कहानी सार्थक महसूस होती थी. हैजे के ऊपर लिखी उनकी एक कहानी में पोता-पोती, दादा-दादी सब एक एक करके दो दिन में पूरा परिवार ही मर जाता है. पर बाद में लिखी उनकी कहानियों में पता चलता है कि जीवित मनुष्य का दुख ज्यादा बड़ा होता है. जिंदा रहना मरने से ज्यादा बड़ा दुख है.

युवा धर्मवीर भारती के इस कथा-संग्रह की विशेषता यही है कि हर कहानी में युवावस्था झलक रही है. हर तरह की कहानियां ट्राई की गई हैं. बस इनमें प्रेम की कहानियां नहीं हैं, जिनको लेखक ने अपने मशहूर उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ में लेखन का आधार बनाया था.

पचास पेज में लिखी ये नौ कहानियां उस दौर को समझने के लिए पढ़ी जा सकती हैं. हालांकि उस वक्त तक मंटो बहुत बड़े लेखक के रूप में स्थापित हो चुके थे. कहीं कहीं धर्मवीर भारती की इन कहानियों में मंटो के लेखन की छाप देखी जा सकती है. यही नहीं, धर्मवीर भारती ने अपने लेखन में अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग किया है.

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