मृत्यु हमें कैसे प्रभावित करती है? हम अपनी मृत्यु से डरते हैं या किसी और की मृत्यु से उपजे भय से? किसी और की मृत्यु से हम भयग्रस्त हो जाते हैं या दुखी होते हैं? फिर क्या हमें अपनी मृत्यु से डर लगने लगता है? मृत्यु डर लाती है या दुख?
लेकिन अगर हम कभी ना मरें तो हमारी सबसे बड़ी इच्छा क्या होगी? शायद यही कि हम मर जाएं. शायद तब हम प्रयास करेंगे कि किसी तरह हमारी मौत हो, उसके लिए रिसर्च करेंगे. पर अभी तो हमें पता है कि एक दिन मर जाना है. हमारे मरने से हमारे सारे दर्द मिट जाते हैं. पर किसी और के मरने से, हमारे करीबियों के मरने से हमारा दर्द बढ़ जाता है, हम खुद मरना नहीं चाहते पर हमारा जीवन मुश्किल हो जाता है. पर अगर हम कभी ना मरें और हमारे करीबी मर जाएं तो हमारा जीवन कैसा होगा? अश्वत्थामा की तरह? किसी लेखक के लिए मृत्यु क्यों आकर्षण पैदा करती है, यह दुख है या सिर्फ एक जिज्ञासा है?
मानव कौल का नया उपन्यास ‘तितली’ आया है जो मृत्यु के बारे में है. मानव ने डेनमार्क की एक लेखिका नाया का एक उपन्यास पढ़ा था जिसमें नाया अपने बेटे की मृत्यु के बारे में लिखती हैं. इस उपन्यास ने मानव को इस कदर अपने आगोश में लिया कि उन्होंने नाया से मिलने का मन बना लिया. इस बीच उन्हें एक सपना भी आया जिसमें वो नाया से मिलते हैं. इसके बाद उन्होंने नाया को एक ईमेल कर दिया. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि नाया की तरफ से जवाब आएगा. मानव ने इस उपन्यास में इस ईमेल और उसके जवाब की प्रतीक्षा का बड़ी ईमानदारी से वर्णन किया है. उन्हों एक फैनब्वाय की तरह नाया को ईमेल किया था. चूंकि नाया की तरफ से मानव को जवाब नहीं आया है इसलिए मानव ने भी अपनी एक फैन के मैसेज का जवाब नहीं दिया. हिसाब बराबर.
मानव के लेखन में यह सहजता, यह आत्मस्वीकृति और अपने मन की बातों को बड़ी सावधानी से पन्ने पर उतार देने की कला मुझे बहुत सुंदर लगती है. एक जगह वह लिखते भी हैं कि जो बातें वो खुद महसूस करते हैं, जिस तीव्रता से, उस तीव्रता से पन्ने पर नहीं उतार पाते. इस बात से डेनमार्क की लेखिका नाया भी इत्तेफाक रखती हैं.
तो अंततः मानव को नाया का जवाब आता है और वो मिलने के लिए उन्हें डेनमार्क बुलाती हैं. फिर मानव ने अपनी फैन शायरा को भी जवाब दिया है और उनको भी मिलने के लिए लैंडूर बुलाया है. यह बड़ी सुंदर बात है कि वाकई मानव ने दो महीने का वक्त लेकर डेनमार्क का टूर किया और नाया से मिल के आए. पूरी किताब पढ़ते हुए कहीं पता नहीं चलता कि वो एक एक्टर हैं, वो सिर्फ लेखक हैं इस मायने में.
प्रथम दृष्टया यह किताब नाया के बेटे कार्ल की मौत से उपजे दुख के बारे में लगती है. उपन्यास का टाइटल भी नाया और कार्ल के जीवन से ही जुड़ा है. पर जब आप दुबारा निगाह डालते हैं तो यह किताब शायर के बारे में भी उतनी ही है. आधी किताब में शायर के मानव से मिलने का जिक्र है. बाकी आधी में नाया से मिलने का. दोनों ही औरतों से लेखक मृत्यु के बारे में बात करता है. दोनों से मिलते हुए लेखक मौजूद नहीं लगता, ऐसा लगता है कि लेखक का प्रेत है वहां पर.
लेखक सिनेमा और थिएटर से हैं तो एक्ट चेंज करने का लोभ संवरण नहीं कर पाते. पहाड़ और कैफेज के बीच चल रही कहानी में मानव ट्विस्ट लाते हैं. अपने मित्र क्लाउस के द्वारा. क्लाउस एक बेहतरीन, कॉम्प्लेक्स कैरेक्टर है जिससे आप मिलना चाहते हैं. अपनी जटिलताओं के बावजूद वह अपने दोस्तों से, अपने जानने वालों से बड़ा प्रेम करता है. उस व्यक्ति का जीवन जीने का तरीका हर वक्त मृत्यु के करीब लगता है. हालांकि यह कहना क्रूर होगा पर जिस तरीके से कहानी में क्लाउस जा रहा है, लगता है कि वो अंत तक मर जाएगा. पर ऐसा नहीं होता है और मैं उनके लंबे जीवन की कामना कर रहा हूं.
उपन्यास का मूल भाव कथ्य का होता है. लैंडूर और कोपेनहेगन की अपनी यात्रा में लेखक ने कथ्य को प्राथमिकता दी है. कई जगहों के लोगों की भावनाओं का इसमें विस्तार है. चाहे वो लैंडूर में एक टैक्सी वाला हो, एक बूढ़ी औरत हो खाना खिलाने वाली, या रस्किन बॉन्ड से मिलना हो या फिर डेनमार्क में लेखक को एक अनाम मैसेज का आना हो जो नाया को कुरेदने से उन्हें रोकता हो- यह सारी बातें जीवन के कथ्य को विस्तारित करती हैं.
शुरुआत में ही मानव ने अपनी रचनात्मकता को अपने मन के अंदर एक काल्पनिक तालाब से जोड़ा है. अंत आते आते नाया उनसे कहती हैं कि कई बार प्रतिभा समंदर की एक बड़ी मछली की तरह होती है जो एक तालाब में नहीं आ सकती, उसे तहस नहस कर देती है. यह वर्णन मुझे बड़ा सुंदर लगा. यह रिश्तों में भी लागू होता है. शायद नाया रिश्तों के बारे में ही बोल रही थीं. वास्तव में वह क्लाउस और उनकी प्रेमिका के बारे में बोल रही थीं.
यह भी एक सुंदर बात थी कि एक छोटे देश में एक शहर में लोग कैसे एक दूसरे को जानते हैं और उनकी भावनाओं की इज्जत करते हैं. मैं यह सोच रहा था कि क्या अपने यहां कोई मां अपने बेटे की मौत को लेकर इस तरीके से खुद को एक्सप्रेस कर सकती है?
मेरी मां मेरे से बड़े एक बेटे की मौत को लेकर पैंतीस साल बाद भी उसी तरीके से बात करती है जैसे कि कल की ही घटना हो. आज भी जब वह तारीख आती है तो वह उद्वेलित हो जाती है. उस बेटे को और कोई याद नहीं करता, इस संसार में किसी को नहीं पता कि वो धरती पर आया था. पर उसकी मां को पता है. जब भी मां उस बारे में बात करती है, मैं थोड़े से ज्यादा नहीं सुन पाता और बात बदल देता हूं. पर शायद अब लगता है कि एक बार तो पूरा सुनना ही पड़ेगा. मौत के बारे में सुनने के लिए मानव कोपेनहेगन तक चले गये. मैं अपने घर तक तो जा ही सकता हूं.