इंसान आत्महत्या क्यों करता है?

डिस्क्लेमर: ये कोई एक्सपर्ट जानकारी नहीं है. मुझे कोई मेडिकल नॉलेज नहीं है. ये मानव मन के भावों को समझने की कोशिश है. विशेषकर बाइपोलर डिसऑर्डर को. अपने मन और अपनी जान पहचान के लोगों के मन की बातें सुनकर-समझकर. मन में नकारात्मक, सुसाइडल ख्याल आते ही मनोचिकित्सक से मिलें. उसके अलावा कोई और मदद नहीं कर सकता. उसकी सलाह के बाद ही फैमिली और दोस्त ठीक से मदद कर पाएंगे. वरना अपने तरीके से ये इलाज करें तो और ज्यादा इरिटेट कर देंगे.

आप जिस रास्ते पर जा रहे हैं, उस पर पानी भरा है. पानी आपके होठों तक आ रहा है, नाक को नहीं छू पा रहा. आप थोड़ी सावधानी से जा रहे हैं और चलते जा रहे हैं. बोलने का मन करता है या गाने का मन करता है तो आप ठोड़ी थोड़ी ऊपर कर के मंशा पूरी कर लेते हैं. लेकिन अचानक आपको अहसास होता है कि आपके पैरों के नीचे काई है. आप और संभलकर चलना शुरू करते हैं. पर कुछ देर बाद पैर का धरातल से संपर्क टूटने लगता है. आप पैर रखना चाहते हैं, पर नहीं रख पाते. चिल्लाना चाहते हैं, पर पानी आपके मुंह में आ जाता है. थकान की वजह से जोर से सांस लेना चाहते हैं, पर पानी नाक में चला जाता है. आपकी जान निकलनेवाली होती है कि अचानक पैर के नीचे समतल मैदान मिल जाता है और आप आराम से चलने लगते हैं. जान में जान आती है. आपको लगता है कि बेवजह परेशान हो रहे थे, थोड़ा सा पैर ऐसे रखते तो आराम से निकल सकते थे. देखो तो कितना सुंदर दृश्य है और मैं कितना ठाट से किसी राजकुमार की तरह अकेले विचरण कर रहा हूं. विष्णु के बाद मुझे ही मौका मिला है क्षीरसागर में रहने का. पर अपने मन में ये पता रहता है कि रास्ता भले ही सुगम और मजेदार हो गया हो, पानी तो नाक और होठों के बीच है ही.

कल्पना करें कि इसी रस्ते पर आपको एक दोस्त मिल जाता है जिसके जूतों में कीलें लगी हों और हाथ कुछ ऐसे हों कि उसको पकड़ते ही पानी साफ हो जाता हो. साफ चिकना रास्ता. थोड़ी दूर पर खूबसूरत पानी का झरना. हल्की धूप और दूर दिखते हरे भरे पेड़. इसके बाद दोस्त का खिलंदड़ अंदाज. कितनी खूबसूरत होगी वो यात्रा! आप इसे खत्म नहीं करना चाहेंगे. अमर होना चाहेंगे ताकि इसका आनंद उठा सकें. उस दुख की भी इसमें भरपाई कर सकें जिसे आपने अकेले चलते हुए महसूस किया है. भर भर के नथुनों से सांस लें, जी भर के गायें, दौड़ें. पर मन में हमेशा यही ख्याल रहेगा कि कहीं दोस्त का हाथ ना छूट जाए. हाथ छूटते ही आप वापस उसी काई वाले रास्ते पर आ जाते हैं.

एक पल में इतनी ऊर्जा महसूस होती है कि आपको लगता है आप चंद्रमा पर जा सकते हैं. दस दिन में क्वांटम फिजिक्स पढ़ सकते हैं, नये तारों की खोज कर सकते हैं. एक साधारण मनुष्य जो नाचता-गाता है, हंसी मजाक करता है, वो आपको तुच्छ महसूस होता है. लगता है कि उसके जीवन का अस्तित्व ही क्या है. आपने जीवन में किया ही क्या अगर कोडिंग नहीं सीखी, स्पेस जंप नहीं किया, मैथ नहीं सीखा, फिलॉसफी नहीं पढ़ी, अत्याधुनिक विज्ञान को नहीं समझा. पर अगले ही पल इतना अंधकार महसूस होता है कि आप खुद को तुच्छ मानने लगते हैं. एक अपराधी मानने लगते हैं. आपके मन का चोर डाकू-हत्यारा बनकर आपके ऊपर हावी हो जाता है. अपनी छोटी से छोटी गलती आपके लिए बहुत बड़ा क्राइम बन जाती है. क्योंकि कुछ देर पहले आप अपनी नजरों में इतने महान थे कि साधारण मनुष्य की तरह गलती कैसे कर सकते हैं.

आप किसी लड़की से बात करने जाते हैं, आपकी भाषा और आपके विचार किसी फिलॉसफी से घूमकर आते हैं. वो मानव सभ्यता की हजारों सालों की फिलॉसफी से ट्रेवल करते हुए आज की भाषा में उस लड़की तक पहुंचते हैं. आपका उद्देश्य है सिर्फ अपने दिमाग से खेलना और उससे बात कर के आनंदित होना. संभवतः उस लड़की में आप एक कम्पेनियन खोज रहे होते हैं जो मस्तिष्क की अनंत जिज्ञासा में पार्टिसिपेट करे. कम से कम उसे स्वीकार करे. लेकिन उस लड़की को ये भाषा, ये बात बहुत क्रीपी लगती है, वो डर जाती है कि ये इंसान क्या बोल रहा है. अभी कुछ देर पहले तक तो ये जेंटलमैन था, अभी अचानक से ऐसा क्यों बोल रहा है. क्या इसके मन में कोई खोट है? वो आतंकित हो जाती है. आपको अहसास होता है कि आपने कुछ शब्द ऐसे चुने जिनका आपकी नजर में मतलब कुछ और था. पर उसके लिए कुछ और है. आप दस सफाईयां देते हैं. वो मान जाती है या फिर नहीं मानती है और किनारे हो जाती है. लेकिन आप नहीं मानते. अपने मस्तिष्क में आप हजारों बार उस बात को प्ले करते हैं. करते रहते हैं और रुकते नहीं है. ना उसे माफ कर पाते हैं ना खुद को. अपनी महानता में आप दब जाते हैं. ये नहीं समझ पाते कि एक साधारण इंसान बोलने-हंसने में चूक कर सकता है. इस चूक को मानने में कोई बुराई नहीं. पर यूनिवर्स की यात्रा कर आया मस्तिष्क ये मानने को तैयार नहीं होता.

फिर आप खुद को एक साधारण खिलंदड़ मानव बनाना चाहते हैं. आप दिखाते हैं कि आपसे ज्यादा फ्लर्टेशस कोई है नहीं. आपको नहीं पता कि आप क्या करने जा रहे हैं. इसका क्या हासिल होगा. पर अपने मस्तिष्क को ये दिखाने में जुट जाते हैं कि देखो मैं कितना स्मार्ट, बातूनी हूं जिस पर कोई लड़की पल भर में न्यौछावर हो सकती है. आपको नहीं पता कि आप क्यों कर रहे हैं. अचानक ये खुमार उतरता है और आप फिर से उसी अंधेरे में चले जाते हैं. जहां रोशनी होते ही पानी ही पानी दिखाई देता है. पैरों के नीचे काई आ जाती है. दोस्त मिल जाता है तो ठीक वरना पैर फिसलते रहते हैं. आपके लिए बोलना और सांस लेना भी दुश्वार हो जाता है.

एक हाथ का इंतजार होता है बस. वो हाथ पकड़कर आपको खींच ले तो आप धरती पर आ जाते हैं. बिल्कुल सामान्य इंसान की तरह जीवन जीने लगते हैं. पर वो हाथ हटते ही आप वापस उसी पानी में पहुंच जाते हैं.

इसमें किसी का दोष नहीं होता. आपका हाथ पकड़कर कोई कितनी देर चल सकता है? आपके लिए जीवन जीना ही संघर्ष हो जाएगा. सारी काबिलियत के बावजूद. मां, बाप, परिवार, पत्नी, प्रेमिका, दोस्त सब अपने अपने तरीके से समझना चाहते हैं. कुछ कम समझते हैं, कुछ समझ जाते हैं. पर किसी में वो समझ नहीं होती कि आपको बाहर खींच सके. आपको खुद ही अपना पैटर्न पहचानना होता है. आप उसके साथ जीना सीख भी सकते हैं और नहीं भी सीख सकते हैं.

इसमें सिर्फ एक बात तय होती है. जीवन जीना बहुत मुश्किल हो जाता है.

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